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Tuesday, November 11, 2025

आबू गौरव गाथा

 

आबू गौरव गाथा


अर्बुदा की भव्य गोदी में, बैठा है आबू पर्वत

इस गिरि पर इतिहास ने जाने ली हैं कितनी करवट

देलवाड़ा के जैन मंदिर, आबू की शान बढ़ाते

वास्तुशिल्प श्लाघा करते, जन जन नहीं अघाते

एक सिद्ध ने अपने नक्ख से खोद के, नक्खी झील बनाई

स्नान ध्यान कर कार्तिक पूर्णिमा को, करते लोग बड़ाई

मनोहारी छटा, भव्य दृश्य, नक्खी के मस्त नज़ारे

कहीं पे चलती छोटी कश्ती, कहीं पे बड़े शिकारे

अर्बुदा का मंदिर ही तो, अधर देवी कहलाता

जिसके दर्शन हेतु हर जन, झुकके अंदर जाता

साढ़े सात सौ सीढ़ी नीचे, होते गोमुख दर्शन

ऋषि मुनियों की तपोभूमि पे, निर्मल होता तनमन

ईश्वरीय अध्यात्म हेतु, ब्रह्म कुमारी विश्वविद्यालय

हिन्दू, जैनी और बोद्धों के, जाने कितने देवालय

अरावली और हिमालय के मध्य, सबसे ऊँचा और प्रखर

पाँच हज़ार एक सौ पचास फुट पर तना खड़ा है गुरु शिखर

यहाँ पे वायु सेना स्टेशन, सक्रिय रायफल राजपुताना

आंतरिक सुरक्षा अकादमी और के रि पु बल भी है जाना माना

भारत माँ के सजग प्रहरी रक्षा करते आबू की आन की

जो देखे दुश्मन टेढ़ी नज़र से, तो ये बाज़ी लगादें जान की

"जय हिन्द जय आबू का, मिलकर लगाएँ नारा

इस आबू की शान बढ़ाना, ये ही धर्म हमारा

रचयिता

रचयिता : आनन्द कुमार आशोधिया कॉपीराइट 1996-2025

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