Showing posts with label श्रीमान. Show all posts
Showing posts with label श्रीमान. Show all posts

Wednesday, January 28, 2015

श्रीमान मुझे गुटखा कहते हैं - नया हिन्दी गाना गीत कविता

श्रीमान, मुझे गुटखा कहते हैं!

श्रीमान मुझे गुटखा कहते हैं - नया हिन्दी गाना गीत कविता

हर नुक्कड़ चौराहे पे, पान की दूकान पर,
भिन्न भिन्न आकार में, भिन्न भिन्न प्रकार में,
आपकी सेवा में उपलब्ध हूँ श्रीमान, मुझे गुटखा कहते हैं!

आप भी आएं, दूसरों को भी लाएं,
खुद भी खाएं, दूसरों को भी खिलाएं,
क्योंकि सहजता व प्रचुरता में उबलब्ध हूँ श्रीमान, मुझे गुटखा कहते हैं!

गले और गाल के कैंसर की गारंटी है
जवानी में ही बुढ़ापे के असर की गारंटी है
धीरे धीरे गुटक लेता हूँ इंसानों की जान, मुझे गुटखा कहते हैं!

खांसी कफ़ के साथ साथ, दांत भी खराब होंगे
शारीरिक कमजोरी के संग, गुर्दे और आंत भी खराब होंगे
मेरे भेजे मुर्दों से तो क्षुब्ध है श्मशान, मुझे गुटखा कहते हैं!

छोटी मोटी विपदा नहीं, साक्षात् काल हूँ मैं,
यम यहाँ, दम वहां, उससे भी विकराल हूँ मैं,
साक्षात् मौत के सामान का प्रारब्ध हूँ श्रीमान, मुझे गुटखा कहते हैं!

जीवन पर्यंत आपको कंगाल बनाए रखूँगा,
इस बेशकीमती ज़हर का ग़ुलाम बनाए रखूँगा
आप फिर भी मुझे गुटक रहे हैं, स्तब्ध हूँ श्रीमान, मुझे गुटखा कहते हैं!

रचयिता : आनन्द कवि आनन्द कॉपीराइट © 2015
श्रीमान मुझे गुटखा कहते हैं - नया हिन्दी गाना गीत कविता
Read More »