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Tuesday, August 24, 2021

गुस्ताखी माफ़- नया हिन्दी गाना गीत कविता

गुस्ताखी माफ़ 

गुस्ताखी माफ़- नया हिन्दी गाना गीत कविता

मल मल के आँख देखता हूँ, पर भरा पूरा शहर मुझे भाता नहीं है
एक मैं हूँ और एक तूँ है, इसके सिवा कुछ नज़र आता नहीं है

ये माना मेरी जाँ, तूँ सँग में नहीं है
मेरा भी जीवन कुछ उमंग में नहीं है

ये भाव छिपा के रखना, ये दिल भी बचा के रखना,
कहीं खा ना जाए चुगली जुबां , बस होंठ दबा के रखना

याद और अहसास भुलाए नहीं जाते 
ये वो नगमे है जो कभी गाये नहीं जाते 

हसीनों के नाज़ ओ नखरे, फूटी आँख नहीं सुहाते
प्रेयसी के प्रेम वाक्य, मन को ज़रा नहीं भाते 
कोई जाके कहदे उन्हें,

तेरे गालों को छूती ज़ुल्फ़ों से,
तूँ कहे तो ज़रा अटखेलियाँ करलूँ, गुस्ताखी माफ़
तेरी कंचन कामिनी काया को,
तूँ कहे तो ज़रा देर बाँहों में भरलूँ, गुस्ताखी माफ़

जो उठा मन में, विचारों का ताँता
तेरी ही सूरत आ जा रही है
हाल ए दिल तुझको, बताऊँ मै कैसे
यही चिन्ता रात दिन मुझे खाए जा रही है

रचयिता : आनन्द कवि आनन्द कॉपीराइट © 2021



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Saturday, August 21, 2021

दँगा भाग 2 - नया हिन्दी गाना गीत कविता

दँगा भाग 2

दँगा भाग 2 - नया  हिन्दी गाना गीत कविता

अमन-चैन लौट आया, लौट आई और एक जाँच
निश्चिन्त हुआ हर एक, साँच को है अब क्या आँच
पूरसूकून मैं भी लौटा अपने शहर बिलकुल अज़नबी की तरह
माकूल नज़र से तौला हर किसी को सच्चे मज़हबी की तरह

रिक्शा वाले से किराया तय ठहराने को ज्यूं ही आगे बढ़ा
देखता हूँ की वो मेरी ही तरफ़ आ रहा है चढ़ा
मैं घबराया, रिक्शा वाला मुस्कराया, हाथ सलाम में उठाये हुए
मैं तो और भी ठिठक गया अपनी पोटली बगल में दबाये हुए
मेरी आँखों में झांकते अजनबीपन ने रिक्शा चालक की मुस्कान छीन ली
तब जाकर मेरे शक्की मन ने चैन की साँस ली
रास्ते भर मैं उचक उचक कर कूचे गली मोहल्लों के निशान तलाशता रहा
रस्ते में ड्यूटी पर तैनात पुलिसियों से रिक्शा चालक की निशानदेही करवाता रहा
मुकाम आने तक अपने मन को खुद ही ढ़ाणढ़स बँधाता रहा
रियर व्यू मिरर में रिक्शा वाले से खुद ही नज़रें चुराता रहा
ना जाने क्यों मुझे रिक्शे वाले की नीयत पर शक हो रहा था
मुझे देख कर उसकी आँखों में जो उभरी थी चमक, उस पर तो और भी शक हो रहा था
या खुदा, हे भगवन किसी तरह नैय्या पार लगादे
इस काल समान रिक्शा चालाक से निज़ात दिलादे
कि तभी रिक्शा रुकी, मैं सहमा सहमा काँप गया
रिक्शा चालक शायद मेरे मन का डर भांप गया
वह बोला भाई साहब आपने मुझे पहचाना नहीं?
भूल गए? मैं रहमत हूँ, क्या अब भी मुझे जाना नहीं
मैं खिसियानी हँसी हँस कर रह गया
फिर से ज़माने की रौ में बह गया

अब मैं फिर से शेर की तरह दनदनाता फिरता हूँ
दँगा तूफ़ान की क्या मजाल किसी से नहीं डरता हूँ
क्या करूँ इन्सान हूँ, अत: फिर से किसी बलवे की बाट जोह रहा हूँ
अपना तमाम सामान बाँधे, सिरहाने रखकर सो रहा हूँ

रचयिता : आनन्द कवि आनन्द कॉपीराइट © 2015
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Monday, October 19, 2015

मैं ख्याल तुम्हारे बुनती रहूँ - नया हिन्दी गाना गीत कविता

मैं ख्याल तुम्हारे बुनती रहूँ

तुम लिखते रहो मैं पढ़ती रहूँ, सपनों की गागर भरती रहूँ 
तुम गाओ तराने प्यार के, मैं ख्याल तुम्हारे बुनती रहूँ 

हर बार तमन्ना होती है कि, लगा पंख कहीं उड़ जाऊं 
तेरी बाहों के सशक्त घेरे में, कभी जलूं कभी बुझ जाऊं 
तेरी छाती पे सर रख के बस आँख मूँद तुझे सुनती रहूँ 
 तुम गाओ तराने प्यार के, मैं ख्याल तुम्हारे बुनती रहूँ 

कभी रीती, कभी भरी भरी, कभी सुस्ती कभी अलसाऊं 
कभी धधकती, कभी सुलगती, कभी खुदी में जल जाऊँ 
तेरे ओज की इस ऊर्जा में, शनैः शनैः मैं भुनती रहूँ 
तुम गाओ तराने प्यार के, मैं ख्याल तुम्हारे बुनती रहूँ 

तुम लिखते रहो मैं पढ़ती रहूँ , सपनों की गागर भरती रहूँ 
तुम गाओ तराने प्यार के, मैं ख्याल तुम्हारे बुनती रहूँ 

रचयिता : आनन्द कवि आनन्द कॉपीराइट © 2015-16
मैं ख्याल तुम्हारे बुनती रहूँ - नया  हिन्दी गाना गीत कविता

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Sunday, September 27, 2015

ना जाने क्यूँ - नया हिन्दी गाना गीत कविता

ना जाने क्यूँ

ना जाने क्यूँ - नया  हिन्दी गाना गीत कविता

इक छवि पलकों की कोर तक आके जा रही है
दूर खड़ी हो अधरों से खुद ही मुस्कराए जा रही है
प्यारी सी मनमोहक अदा लिए मन को रिझा रही है
ना जाने क्यूँ फिर भी पास आने से हिच किचा रही है

तुम बांधो तारीफों के पूल फिर हो के खुश भी क्या करना
जब तुम ही हासिल नहीं जग में तो ऐसे जहाँ का क्या करना
अब आके गले लगाले मौत फिर घुट घुट जी के क्या करना

नदी के मुहाने पे खड़ा सोचता हूँ की वो धारा कब आएगी
जब लाएगी चैन ओ सुकून और ज़िन्दगी महकाएगी

खुदा करे वो दिन जरूर आये और मेरे इस सपने को साकार कर जाए
या तो नदी ही किनारे से दो चार हो जाए या खुद किनारा ही नदी में समा जाए

रचयिता : आनन्द कवि आनन्द कॉपीराइट © 2015-16
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पेट की भूख मुझे सोने नहीं देती - नया हिन्दी गाना गीत कविता

पेट की भूख मुझे सोने नहीं देती

पेट की भूख मुझे सोने नहीं देती - नया  हिन्दी गाना गीत कविता

पेट की भूख मुझे सोने नहीं देती
आँखों की शर्म मुझे रोने नहीं देती।
पेट की भूख मुझे सोने नहीं देती।।

किस से गम छुपाऊँ और किस को घाव दिखाऊं
इस पेट काटती भूख को कैसे मैं बहलाऊँ

समझ नही आता मुझे क्यों दो जून की रोटी मयस्सर नहीं होती
सुलगती भूख की मुलाक़ात रोटी के टुकड़े से अक्सर नहीं होती

इंसानियत बेचकर खा गया इंसान, हम मज़लूमों पर उनकी निगाह अक्सर नहीं होती
बेसहारा निराश्रित भूख से बिलबिलाते चेहरों पे, दर्द की शिकन रह गुज़र नहीं होती

रचयिता : आनन्द कवि आनन्द कॉपीराइट © 2015-16
पेट की भूख मुझे सोने नहीं देती - नया  हिन्दी गाना गीत कविता



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Saturday, September 26, 2015

हकीम से ही ठन गई - नया हिन्दी गाना गीत कविता

हकीम से ही ठन गई

हकीम से ही ठन गई  - नया  हिन्दी गाना गीत कविता

ये सुनकर तो मेरी भौंहे तन गई।
उस नाकारा हकीम से ही ठन गई।

जो मेरी बिमारी को लाइलाज बताता है।
मोहब्बत नाम का रिवाज़ बताता है।

अब क्या करूं सारे ज़माने से दुश्मनी कैसे मौल लूँ।
अब हो गई मोहब्बत तो उसे तराजू में कैसे तौल लूँ।

ऐ ज़माने तू ही बता कोई कैसे जिए चला जाए?
जब खरामा खरामा इस दिल का सुकून चला जाए?

रचियता : आनन्द कवि आनन्द
आनन्द

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Monday, February 2, 2015

मैं शोर मचाउंगी - नया हिन्दी गाना गीत कविता

मैं शोर मचाउंगी

मैं शोर मचाउंगी - नया  हिन्दी गाना गीत कविता

लड़की : सुन बलिए, ओए छलिये, मैं जान गई तेरा झूठ,
चल छड़ बहका ना, तेरे नाल नहियो आना, मत कर जोरम जोर
लड़का : नहीं ते
लड़की : ते शोर मचाउंगी, मैं शोर मचाउंगी

लड़की : मैं जानूँ तेरे फ़साने, झूठे तेरे तराने, तूं मुझपे ना डोरे डाल
ये अदा तेरी मैं जानूँ, चाल तेरी पहचानूं , जा फँसा किसी को और
लड़का : क्या कहा
लड़की : पुलिस बुलाऊँगी, मैं शोर मचाउंगी

लड़की : मैं न मानू तेरी बात, तेरी घोड़ी और बारात, ये है तेरा प्रेमजाल
पर मैं नहि फँसनी, तेरी ओर नहीं तकनी, दिल ले गया मेरा चोर
लड़का : मैं हूँ ना
लड़की : तुझे तो जेल कराऊँगी, मैं शोर मचाउंगी

लड़की : तूं झूठा तेरे वादे झूठे, झूठे तेरे सपने, तूं छलिया बेईमान
झूठे तेरे कसमें वादे, झूठे तेरे इरादे, मैं कटी पतंग तूं डोर
लड़का : चक दूँ?
लड़की : मैं तुझे छकाऊंगी, मैं शोर मचाउंगी

लड़की : तूं सच्ची साँच बतादे, जो दिल में तेरे जतादे, मत कर मुझे हैरान
क्यूँ करता हेराफेरी, मैं होना चाहूँ तेरी, नहीं और कोई मेरा ठोर
लड़का : मैं आऊँ
लड़की : हाथ ना आउंगी,  मैं शोर मचाउंगी
रचयिता : आनन्द कवि आनन्द कॉपीराइट © 2015-16
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Friday, January 30, 2015

वक़्त - नया हिन्दी गाना गीत कविता

वक़्त

वक़्त - नया  हिन्दी गाना गीत कविता

वक़्त का गुलाम है ये आदमी
वक़्त का नवाब भी है ये आदमी
आदमी ही सत्य को पहचानता
आदमी ही धर्म को है मानता
जानता है राम को ये आदमी
वक़्त का गुलाम है ये आदमी
आदमी ही झूठ को तराशता
आदमी ही सत्य को नकारता
स्वीकारता है "काम" को ये आदमी
वक़्त का गुलाम है ये आदमी
आदमी ही आदमी को मारता
आदमी ही जिंदगी संवारता
वीरता का नाम भी है आदमी
वक़्त का गुलाम है ये आदमी
आदमी ही आइना समाज का
वो रक्षक भी है नारी की लाज का
यहाँ भी बदनाम है यह आदमी
वक़्त का गुलाम है ये आदमी
आदमी ही कायरता का रूप है
आदमी ही मौत का स्वरूप है
रूप है भगवान का ये आदमी
वक़्त का गुलाम है ये आदमी
वक़्त का नवाब भी है ये आदमी

रचयिता : आनन्द कवि आनन्द कॉपीराइट © 2015

वक़्त - नया  हिन्दी गाना गीत कविता
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Wednesday, January 28, 2015

बेवफाई - नया हिन्दी गाना गीत कविता

बेवफाई

बेवफाई - नया  हिन्दी गाना गीत कविता

होठों से लगाके पी लूं, तू वो जाम ही नहीं
सीने पे गुदा के जी लूं, तू वो नाम ही नहीं

बेवफाई का सबब, अब तक जान ना सका
चेहरे पे लगे मुखौटे को, पहचान ना सका
तूं छू ले हर बुलंदी को, हम बेनाम ही सही

होठों से लगाके पी लूं, तू वो जाम ही नहीं
सीने पे गुदा के जी लूं, तू वो नाम ही नहीं

मायूसी का आलम, हमें जीने नहीं देता
तन्हाई का आलम, हमें जीने नहीं देता
जिसकी करूँ इबादत, तूं वो राम ही नहीं

होठों से लगाके पी लूं, तू वो जाम ही नहीं
सीने पे गुदा के जी लूं, तू वो नाम ही नहीं

काली घनी रातों में, अकेला जगता ही रहा मैं
भुला के सब कुच्छ, खुद को ठगता ही रहा मैं
खुशियों से भरदे दामन, ऐसी कोई शाम ही नहीं

होठों से लगाके पी लूं, तू वो जाम ही नहीं
सीने पे गुदा के जी लूं, तू वो नाम ही नहीं

रचयिता : आनन्द कवि आनन्द कॉपीराइट © 2015

बेवफाई - नया  हिन्दी गाना गीत कविता
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तेरे प्यार में - नया हिन्दी गाना गीत कविता

तेरे प्यार में 

तेरे प्यार में - नया हिन्दी गाना गीत कविता

लड़का : तेरे प्यार में मैंने जग को भुलाया
जग को भुलाया जानम, जग को भुलाया, तेरे प्यार में
लड़की : मैंने भी प्यार में तेरा संग निभाया
तेरा संग निभाया साजन, तेरा संग निभाया, तेरे प्यार में

लड़की : साँसों की सरगम पिया तुझको पुकारे
लड़का : बंशी बनाके मुझे होंठों से लगाले
लड़की : वारी जाऊं तुझपे हाय कैसा नशा छाया, तेरे प्यार में

लड़का : तेरे प्यार में मैंने जग को भुलाया
जग को भुलाया जानम, जग को भुलाया, तेरे प्यार में
लड़की : मैंने भी प्यार में तेरा संग निभाया
तेरा संग निभाया साजन, तेरा संग निभाया, तेरे प्यार में

लड़का : पागल हुआ मन मेरा शराबी सा झूमता
लड़की : बेकाबू हुआ मन मेरा, प्यार तुम्हे चूमता
लड़का : घूमता जहान सारा, ये कैसा नशा छाया, तेरे प्यार में

लड़का : तेरे प्यार में मैंने जग को भुलाया
जग को भुलाया जानम, जग को भुलाया, तेरे प्यार में
लड़की : मैंने भी प्यार में तेरा संग निभाया
तेरा संग निभाया साजन, तेरा संग निभाया, तेरे प्यार में

रचयिता : आनन्द कवि आनन्द कॉपीराइट © 2015

तेरे प्यार में - नया हिन्दी गाना गीत कविता
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मुझे छू ना ना सनम - नया हिन्दी गाना गीत कविता

मुझे छू ना ना सनम

मुझे छू ना ना सनम - नया  हिन्दी गाना गीत कविता

मुझे छू ना ना सनम, तुझे तेरी जान की कसम
मेरी जान की कसम, मैं मर जाऊँगी, हाय मैं मर जाउंगी

मेरे दिल की धड़कन बढ़ती
मेरी साँस तेज़ सी चलती
ना नज़र तेरे से हटती, मैं मर जाऊँगी, हाय मैं मर जाउंगी

ना दिल पे काबू रहता
मेरा जोबन दरिया बहता
मेरा रोम रोम ये कहता, मैं मर जाऊँगी, हाय मैं मर जाउंगी

जब प्रेम ज्वाला सुलगे,
साँसों की लड़ियाँ उलझे
प्रेम बीज़ जब उपजे, तो मैं मर जाऊँगी, हाय मैं मर जाउंगी

रचयिता : आनन्द कवि आनन्द कॉपीराइट © 2015-16
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साजन मैं नहीं नटणी - नया हिन्दी गाना गीत कविता

साजन मैं नहीं नटणी

साजन मैं नहीं नटणी - नया  हिन्दी गाना गीत कविता

प्रेम नदी विच गोता ला ले, साजन मैं नहीं नटणी
तेरे बिन ये जिन्दड़ी सूनी, नहीं कटणी वे नहीं कटणी

मेरे दिल का कोठा सूना, मैं होर किसी को दूँ ना
आजा छू ले प्रेम का पाळा, होर कोई ना छू ना
दो दिन की ज़िन्दगानी यारा, रात दिनां ए घटणी
साजन मैं नहीं नटणी

मेरी जवानी तेरे नां की, होंठ मेरे ये तेरी साकी
आजा पी ले प्रेम पियाला, कुछ ना छोड़ूँ बाकी
मैं तेरी तू साजन मेरा, हर सांस मेरी ए रटणी
साजन मैं नहीं नटणी

ना मुझे होश दिलाइयो, ना मुझे जोश दिलाइयो
होश फ़ाख़्ता कर दूँगी, जो मुझसे अँग मिलाइयो
पेंचें लड़ गए दो नैनों के, रब्बा फिर नहीं डटणी
साजन मैं नहीं नटणी

रचयिता : आनन्द कवि आनन्द कॉपीराइट © 2015-16

साजन मैं नहीं नटणी - नया  हिन्दी गाना गीत कविता
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राशन डिपो धारक की आत्मकथा - नया हिन्दी गाना गीत कविता

राशन डिपो धारक की आत्मकथा 

राशन डिपो धारक की आत्मकथा - नया  हिन्दी गाना गीत कविता
(तर्ज़ : यो यो हनी सिंह)

चार बोरी अनाज की, बात है ये राज़ की
धंधा मेरा चोखा है, मुनाफा भी मोटा है
थोड़ी सी बेईमानी, थोड़ी सी झूठ है
थोड़ी सी बदनीयत और लूट ही लूट है

कोई कुछ बोल जाए, किसी की मज़ाल नहीं
कभी यहाँ अनाज नहीं, कभी यहाँ दाल नहीं
जो भी मुंह खोलेगा, उसका कोटा काट दूंगा
आधा राशन बेच दूंगा, आधा सब मे बाँट दूंगा

कानूनी दांव पेंच सारे नियम ढीले हैं
ऊपर से नीचे तक सब धांधली में मिले हैं
मेरा कोई दोष कोनी, मैं तो सिस्टम का पुर्जा हूँ
बेईमानी, बदनीयती और भ्रष्टाचार से उपजा हूँ

मुझको बदलना है तो सिस्टम को बदल डालो
जागो उठो खड़े हो, राजनीती को बदल डालो
जब तक ये न होगा, बक- बक करते रहो
भूख और कुपोषण से रोज रोज मरते रहो

रचयिता : आनन्द कवि आनन्द कॉपीराइट © 2015-16

राशन डिपो धारक की आत्मकथा - नया  हिन्दी गाना गीत कविता
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आपकी मौजूदगी - नया हिन्दी गाना गीत कविता

आपकी मौजूदगी

आपकी मौजूदगी - नया  हिन्दी गाना गीत कविता

ज़लवा ए हुस्न आपका, रोशन हो गया यह ज़हाँ
नज़र ए इनायत आपकी, महफ़िल हो गई और जवाँ

आपके आने से पहले, महफ़िल थी कुछ खोई-खोई
चन्द्रमा की चाँदनी भी, मद्धिम सी थी सोई-सोई
आपकी मौजूदगी का चर्चा चारों ओर यहाँ
नज़र ए इनायत आपकी, महफ़िल हो गई और जवाँ

खुशबु ए ज़न्नत से, सरोबार थी पहले भी महफ़िल
आपके दीदार से यहाँ, धड़क उठे लोगों के दिल
दिल थाम के बैठे हैं हम तो कहीं लग जाए ना यहाँ-वहाँ
नज़र ए इनायत आपकी, महफ़िल हो गई और जवाँ

एक नज़र पाने को आतुर, सब दिल को बिछाए बैठे हैं
कहीं थम ना जाए दिल की धड़कन, साँस थमाए बैठे हैं
पर आपको मैं क्या कहूँ जो दिल दे बैठे हो वहाँ कहाँ
नज़र ए इनायत आपकी, महफ़िल हो गई और जवाँ

ज़लवा ए हुस्न आपका, रोशन हो गया यह ज़हाँ
नज़र ए इनायत आपकी, महफ़िल हो गई और जवाँ

रचयिता : आनन्द कवि आनन्द कॉपीराइट © 2015-16


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पाती मेरे पी की - नया हिन्दी गाना गीत कविता

पाती मेरे पी की

पाती मेरे पी की - नया  हिन्दी गाना गीत कविता

पाती मेरे पी की पिया से भी प्यारी
पिया के ही प्यार कारन बनी तूँ हमारी

बार-बार चूमूँ तोहे गले से लगाऊं
प्राणप्यारी पाती कब पिया जी को पाऊं
पिया बिन जिया मोरा मारे है उडारी
पिया के ही प्यार कारन बनी तूँ हमारी

तकिये के नीचे तेरी सेज बिच्छादूं
ज़ुल्फों की छाँव करके आ तुझको सुलादूं
लोरी गाऊं मीठी आए नींद की ख़ुमारी
पिया के ही प्यार कारन बनी तूँ हमारी

भोर भए तो तुझे वक्ष में छुपालुं
दुनिया की जलती नज़र से बचालुं
आ मेरे अँग लगजा तुझपे सारी ज़िन्दगी वारी
पिया के ही प्यार कारन बनी तूँ हमारी

जाने काहे फड़के आज़ मोरी बायीं अँखियाँ
आये मोहे हिचकी तो ताना मारे सखियाँ
राम करे पूरवैय्या ले आये खबर तुम्हारी
पिया के ही प्यार कारन बनी तूँ हमारी

पाती मेरे पी की पिया से भी प्यारी
पिया के ही प्यार कारन बनी तूँ हमारी

रचयिता : आनन्द कवि आनन्द कॉपीराइट © 2015-16

पाती मेरे पी की - नया  हिन्दी गाना गीत कविता
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फिर क्या हो - नया हिन्दी गाना गीत कविता

फिर क्या हो?

फिर क्या हो - नया  हिन्दी गाना गीत कविता

गाँव में सजना हो, सजना का अंगना हो, अंगना में छैया हो,
छैया के नीचे मेरे प्यार की मड्डय्या हो - फिर क्या हो?
फिर मैं जानूं या वो जाने - फिर मैं जानूं या वो जाने ....होहो होहो होहो

वो धीरे से मुस्काएगा मैं, घूँघट में शर्माउन्गी
वो अपने पास बुलाएगा मैं, ना में सर हिलाउंगी
वो मुझको खूब मनाएगा मैं, कतई हाथ न आऊँगी
वो गुस्सा हो धमकाएगा मैं, कतई पास ना आऊँगी
फिर क्या हो?
फिर मैं जानूं या वो जाने - फिर मैं जानूं या वो जाने ....होहो होहो होहो

सुबह की लाली से पहले मैं, सखियों से आँख चुरा लूँगी
वो खोद-खोद के पूछेंगी मैं, सारा भेद छुपा लूँगी
जो आएगी याद सजन की, सीने की आग छुपा लूँगी
शाम के ढलते सूरज के संग, उसे अपने पासे बुला लूँगी
फिर क्या हो?
फिर मैं जानूं या वो जाने - फिर मैं जानूं या वो जाने ....होहो होहो होहो

वो गुस्से में सो जाएगा, मैं करके प्यार मना लूँगी
वो अपनी बात अड़ाएगा, मैं बिगड़ी बात बना लूँगी
वो शह पाके ईतरायेगा, मैं नीचे नज़र झुका लूँगी
वो फिर भी समझ ना पायेगा, मैं खुद ही गले लगा लूँगी
फिर क्या हो?
फिर मैं जानूं या वो जाने - फिर मैं जानूं या वो जाने ....होहो होहो होहो

रचयिता : आनन्द कवि आनन्द कॉपीराइट © 2015-16

फिर क्या हो - नया  हिन्दी गाना गीत कविता
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पायलिया भाग दो - नया हिन्दी गाना गीत कविता

पायलिया भाग दो

पायलिया भाग दो - नया हिन्दी गाना गीत कविता

लड़का : तेरी दो पैसे की पायलिया पिया रून झुन रून झुन करती है
कहीं हो न जाए जग में ज़ाहिर, मेरी मोहब्बत डरती है
लड़की : छोटा सा दिल तेरा सांवरी, धक् धक् धक् धक् करता है
मै जानूं या तूं जाने, ये बिना बात ही डरता है

लड़की : सांझ सवेरे तुझसे मिलकर, सबसे नज़र चुराऊं मैं
करके याद मिलन की बातें, मन ही मन शरमाऊं मैं
लड़का : मेरा भी कुछ हाल यही है, कहीं चैन ना पाऊं मैं
बिन तेरे कुछ याद नहीं, इस मन को क्या समझाऊं मैं
मेरे प्यार के मूक गवाह ये आसमान और धरती हैं
लड़की : मेरी भी दो अँखियाँ साजन तेरे प्यार का दम ही भरती हैं

लड़का : तेरे प्यार की गहराइयों में, जब से गोता खाया है
ना इस जहाँ ना उस जहाँ, कहीं चैन न पाया है
लड़की : दिल की हर धड़कन में साजन, तेरा रूप समाया है
सूरा बिना ही दिलो दिमाग पे, अज़ीब नशा सा छाया है
करके याद मिलन की बेला, मेरी कजरी अँखियाँ झरती हैं
लड़का : तेरी कारी-कारी कजरारी अंख, मेरे चैन को हरती हैं

रचयिता : आनन्द कवि आनन्द कॉपीराइट © 2015
पायलिया भाग दो - नया हिन्दी गाना गीत कविता 

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घोटाला - नया हिन्दी गाना गीत कविता

घोटाला

घोटाला - नया हिन्दी गाना गीत कविता

पिछले कुच्छ दिनों से मेरा मन, बहुत मचल रहा है
लालच का महादानव मुझे उद्वेलित कर, आत्मा को कुचल रहा है

बेईमानी से कमाने की इच्छा, बलवती हो रही है
शिष्टाचार और सद्भावना, अन्दर ही अन्दर सती हो रही है

दिल करता है, भ्रष्ट आचार से, कोई घोटाला कर लूँ
अनीति और हराम की कमाई से, अपना घर भर लूँ

जनता की खून पसीने की कमाई, पल भर में डकार जाऊं
खुद पर लगे आरोपों को, पूरी बेशर्मी से नकार जाऊं

खाकर रकम गरीबों की, बेशर्म और नम्फ्ट हो जाऊं
सब इल्जामों पे मिट्टी डाल, कुम्भकर्णी नींद सो जाऊं

ये "थर्ड रेट" आन्दोलनकर्ता मेरा क्या कर लेंगे
अपने खिलाफ मुंह खोलने वाले, एक एक को धर लेंगे

हार, बेइज्जती और सजा के बावजूद भी, नहीं आऊंगा बाज़
करके झूठे वादे धोखे, पांच साल बाद, फिर पहनूंगा ताज़

घपले और घोटालों के फ़ेरहिस्त में, अपना नाम लिखवाऊंगा
करके कायम अराजकता, फिर धृतराष्ट्र हो जाऊँगा

रचयिता : आनन्द कवि आनन्द कॉपीराइट © 2015

घोटाला - नया हिन्दी गाना गीत कविता 
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दँगा - नया हिन्दी गाना गीत कविता

दँगा - भाग 1

दँगा - नया  हिन्दी गाना गीत कविता

रातों रात जाने क्या हुआ कि शहर भर में दँगा हो गया
जन मानस से ले जनप्रतिनिधि तक हर कोई नंगा हो गया
किसी की किस्मत तो किसी की अस्मत, दाँव पर लग गई
शहर फूँक कर जालिमों की आँख गाँव पर लग गई
शहर दर शहर, गाँव दर गाँव, मौत के कारिन्दे दनदनाने लगे
लालच के भूखे भेड़िये, लाशों पर बैठकर रुपये बनाने लगे
अधकच्ची रोटी और लाश एक ही तंदूर में जल गई
दोनों चीज़ इकट्ठी सेंकने की नयी परम्परा चल गई
लावारिश बचपन, तबाह जवानी, उदासीन खँडहर शहर के प्रतीक हो गए
जिनको पड़े थे लाले रोटी के, वे गरीबी के दो कदम और नज़दीक हो गए

मैं कायर नहीं कि ये सब देखता रहूँ
इतना उदार नहीं कि ये सब सहता रहूँ
खून खौल उठा है मेरा यह मंज़र देखकर
धर्म के नाम पर इंसानियत का खून देखकर
मैंने तुरत फुरत एक साहसी निर्णय ले डाला
बीवी बच्चे, नकदी नामा, एक एक कर सम्भाला
अबेर की न देर की, पहली ट्रेन पकडली
एक नया शहर, एक नया गाँव, एक नयी डगर की सुध ली

राजनीति, उठा-पटक, साम-दाम, दण्ड-भेद
अल्हा-ताला, राम-नाम, श्याम-अली, खेद-खेद
तोहमद-इल्ज़ाम, झंडे-डंडे, साथ-साथ
मिटते रहे, बिकते रहे साबूत हाथों हाथ
रचयिता : आनन्द कवि आनन्द कॉपीराइट © 2015


दँगा - भाग 2

दँगा - नया  हिन्दी गाना गीत कविता

अमन-चैन लौट आया, लौट आई और एक जाँच
निश्चिन्त हुआ हर एक, साँच को है अब क्या आँच
पूरसूकून मैं भी लौटा अपने शहर बिलकुल अज़नबी की तरह
माकूल नज़र से तौला हर किसी को सच्चे मज़हबी की तरह

रिक्शा वाले से किराया तय ठहराने को ज्यूं ही आगे बढ़ा
देखता हूँ की वो मेरी ही तरफ़ आ रहा है चढ़ा
मैं घबराया, रिक्शा वाला मुस्कराया, हाथ सलाम में उठाये हुए
मैं तो और भी ठिठक गया अपनी पोटली बगल में दबाये हुए
मेरी आँखों में झांकते अजनबीपन ने रिक्शा चालक की मुस्कान छीन ली
तब जाकर मेरे शक्की मन ने चैन की साँस ली
रास्ते भर मैं उचक उचक कर कूचे गली मोहल्लों के निशान तलाशता रहा
रस्ते में ड्यूटी पर तैनात पुलिसियों से रिक्शा चालक की निशानदेही करवाता रहा
मुकाम आने तक अपने मन को खुद ही ढ़ाणढ़स बँधाता रहा
रियर व्यू मिरर में रिक्शा वाले से खुद ही नज़रें चुराता रहा
ना जाने क्यों मुझे रिक्शे वाले की नीयत पर शक हो रहा था
मुझे देख कर उसकी आँखों में जो उभरी थी चमक, उस पर तो और भी शक हो रहा था
या खुदा, हे भगवन किसी तरह नैय्या पार लगादे
इस काल समान रिक्शा चालाक से निज़ात दिलादे
कि तभी रिक्शा रुकी, मैं सहमा सहमा काँप गया
रिक्शा चालक शायद मेरे मन का डर भांप गया
वह बोला भाई साहब आपने मुझे पहचाना नहीं?
भूल गए? मैं रहमत हूँ, क्या अब भी मुझे जाना नहीं
मैं खिसियानी हँसी हँस कर रह गया
फिर से ज़माने की रौ में बह गया

अब मैं फिर से शेर की तरह दनदनाता फिरता हूँ
दँगा तूफ़ान की क्या मजाल किसी से नहीं डरता हूँ
क्या करूँ इन्सान हूँ, अत: फिर से किसी बलवे की बाट जोह रहा हूँ
अपना तमाम सामान बाँधे, सिरहाने रखकर सो रहा हूँ
रचयिता : आनन्द कवि आनन्द कॉपीराइट © 2015

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श्रीमान मुझे गुटखा कहते हैं - नया हिन्दी गाना गीत कविता

श्रीमान, मुझे गुटखा कहते हैं!

श्रीमान मुझे गुटखा कहते हैं - नया हिन्दी गाना गीत कविता

हर नुक्कड़ चौराहे पे, पान की दूकान पर,
भिन्न भिन्न आकार में, भिन्न भिन्न प्रकार में,
आपकी सेवा में उपलब्ध हूँ श्रीमान, मुझे गुटखा कहते हैं!

आप भी आएं, दूसरों को भी लाएं,
खुद भी खाएं, दूसरों को भी खिलाएं,
क्योंकि सहजता व प्रचुरता में उबलब्ध हूँ श्रीमान, मुझे गुटखा कहते हैं!

गले और गाल के कैंसर की गारंटी है
जवानी में ही बुढ़ापे के असर की गारंटी है
धीरे धीरे गुटक लेता हूँ इंसानों की जान, मुझे गुटखा कहते हैं!

खांसी कफ़ के साथ साथ, दांत भी खराब होंगे
शारीरिक कमजोरी के संग, गुर्दे और आंत भी खराब होंगे
मेरे भेजे मुर्दों से तो क्षुब्ध है श्मशान, मुझे गुटखा कहते हैं!

छोटी मोटी विपदा नहीं, साक्षात् काल हूँ मैं,
यम यहाँ, दम वहां, उससे भी विकराल हूँ मैं,
साक्षात् मौत के सामान का प्रारब्ध हूँ श्रीमान, मुझे गुटखा कहते हैं!

जीवन पर्यंत आपको कंगाल बनाए रखूँगा,
इस बेशकीमती ज़हर का ग़ुलाम बनाए रखूँगा
आप फिर भी मुझे गुटक रहे हैं, स्तब्ध हूँ श्रीमान, मुझे गुटखा कहते हैं!

रचयिता : आनन्द कवि आनन्द कॉपीराइट © 2015
श्रीमान मुझे गुटखा कहते हैं - नया हिन्दी गाना गीत कविता
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