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Sunday, December 28, 2025

हीर राँझा : हरयाणवी लोक रागणी संग्रह

हीर राँझा : हरयाणवी लोक रागणी संग्रह

हीर राँझा : हरयाणवी लोक रागणी संग्रह

हीर राँझा : हरयाणवी लोक रागणी संग्रह

(पिंगल समीक्षा सहित)

लेखक, संकलक एवं विश्लेषक:
आनन्द कुमार आशोधिया
कवि, लोक-साहित्यकार, सांस्कृतिक संरक्षक

प्रकाशक:
Sjain Publication, दिल्ली
ISBN: 978-81-989952-9-2
प्रथम संस्करण | वर्ष: 2025

🖋️ लेखक परिचय

आनन्द कुमार आशोधिया, सेवानिवृत्त भारतीय वायुसेना वारंट ऑफिसर, एक प्रतिष्ठित कवि, अनुवादक और लोक-साहित्य के गंभीर अध्येता हैं।
वे Avikavani Publishers के संस्थापक हैं और हरियाणवी, हिंदी एवं अंग्रेज़ी में 250+ से अधिक रचनाओं के रचयिता हैं।

लोककथा से लोकध्वनि तक : एक सांस्कृतिक पुनर्जन्म

भारतीय उपमहाद्वीप की अमर प्रेमगाथाओं में हीर–राँझा का स्थान अद्वितीय है। यह कथा केवल प्रेम की करुण दास्तान नहीं, बल्कि सामाजिक बंधनों, आत्मबल, और मानवीय प्रतिरोध की सशक्त अभिव्यक्ति भी है। जब यह कथा हरयाणवी रागणी के छंदों में ढलती है, तो वह मात्र पुनर्कथन नहीं रहती — वह लोकचेतना का पुनर्जन्म बन जाती है।

हीर राँझा : हरयाणवी लोक रागणी संग्रह (पिंगल समीक्षा सहित) इसी सांस्कृतिक पुनर्जन्म का साहित्यिक दस्तावेज़ है।

हरयाणवी रागणी : लोकजीवन की लय

हरयाणवी रागणी केवल गायन-शैली नहीं है। यह खेत-खलिहान की मिट्टी, चौपाल की गूँज, स्त्री-पुरुष की पीड़ा, और समाज की स्मृति का स्वर है। इसमें प्रेम है, करुणा है, व्यंग्य है और प्रतिरोध भी।

इस संग्रह में रागणियों के माध्यम से
– हीर की वेदना
– राँझा का वैराग्य
– सेहती की चतुर दृष्टि
– और कैदू की कुटिलता

सब कुछ लोकछंदों की लय में जीवंत हो उठता है।

“ओ मेरे राँझे पाळी, मैं बणूं तेरे घरआळी
तूँ बरात चढ़ा कै आ, मनै ड्योळे में ले ज्या”
(रागणी 23)

यह पंक्ति केवल श्रृंगार रस नहीं, बल्कि लोकभाषा की आत्मा का उद्घोष है।

लोक और शास्त्र का सेतु : पिंगल समीक्षा

इस संग्रह की सबसे बड़ी विशेषता है — पिंगल समीक्षा
यह रचनाओं को केवल भावात्मक नहीं रहने देती, बल्कि उन्हें छंदशास्त्र की कसौटी पर भी परखती है।

लेखक ने
दोहा, चौपाई, रोला, सोरठा, दुकलिया आदि छंदों का प्रयोग करते हुए
– वर्ण-गणना
– यति-विराम
– लक्षण-दोष
का सूक्ष्म विश्लेषण प्रस्तुत किया है।

इस प्रकार यह ग्रंथ हरयाणवी रागणी को केवल गेय विधा से आगे बढ़ाकर एक शोधयोग्य साहित्यिक विधा में प्रतिष्ठित करता है।

रसों का त्रिवेणी संगम

इस संग्रह में तीन प्रमुख रसों का संतुलित और सशक्त समन्वय दिखाई देता है:

  • श्रृंगार रस — हीर-राँझा का प्रथम प्रेम

  • करुण रस — विरह, मृत्यु और विलाप

  • वीर रस — अन्याय के विरुद्ध राँझा का संघर्ष

यह भाव-वैविध्य रचना को केवल संवेदनात्मक नहीं, बल्कि कलात्मक ऊँचाई भी प्रदान करता है।

सांस्कृतिक पुनर्जागरण की दिशा

आज जब लोक-संस्कृति बाज़ारवाद और विस्मृति के संकट से जूझ रही है, तब यह संग्रह एक सांस्कृतिक पुनर्जागरण का आह्वान करता है।

यह ग्रंथ

  • हरयाणवी साहित्य के विद्यार्थियों

  • लोकगायकों

  • शोधकर्ताओं

  • और सांस्कृतिक संरक्षकों

सभी के लिए एक अनिवार्य संदर्भ-ग्रंथ सिद्ध होता है।

निष्कर्ष

“हीर राँझा : हरयाणवी लोक रागणी संग्रह (पिंगल समीक्षा सहित)”
केवल एक प्रेमकथा नहीं है —
यह लोक की धड़कन, शास्त्र की दृष्टि और संस्कृति की साधना का संगम है।

आनन्द कुमार आशोधिया ने यह सिद्ध कर दिया है कि
परंपरा और नवाचार साथ चल सकते हैं,
यदि दृष्टि में गहराई हो और साधना में निष्ठा।

यह कृति हर उस पाठक को स्पर्श करेगी
जो प्रेम, लोकसंस्कृति और कविता को जीवन का सार मानता है।


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द्रौपदी : एक लोक चेतना

 द्रौपदी : एक लोक चेतना

द्रौपदी : एक लोक चेतना

द्रौपदी : एक लोक चेतना

रागनी, समीक्षा और पुनर्पाठ

(हरियाणवी लोककाव्य में स्त्री-चेतना का पुनर्संस्कार)

कवि, संकलक, विश्लेषक:
आनन्द कुमार आशोधिया
(शाहपुर तुर्क, सोनीपत, हरियाणा)

प्रकाशक:
आनन्द कुमार आशोधिया
Avikavani Publishers इम्प्रिंट के अंतर्गत (Self-published)

ISBN: 978-93-344-4058-4
प्रकाशन वर्ष: 2025 | संस्करण: प्रथम

हरियाणवी लोककाव्य में महाकाव्य का पुनर्पाठ

हरियाणवी लोककाव्य की परंपरा में रागनी केवल गायन-विधा नहीं, बल्कि जनमानस की जीवित चेतना है। यह खेतों की माटी, समाज की स्मृति और लोकधर्म का स्वर है। किंतु इस परंपरा में स्त्री—विशेषतः महाकाव्य की नायिकाएँ—अक्सर या तो सौंदर्य-प्रतिमा बनी रहीं, या मौन पीड़ा का प्रतीक।

द्रौपदी, जो महाभारत की सबसे निर्णायक और ज्वलंत स्त्री पात्र है, हरियाणवी रागनी में अब तक पूर्ण स्वर नहीं पा सकी थी।

इसी रिक्ति को भरती है—
“द्रौपदी : एक लोक चेतना – रागनी, समीक्षा और पुनर्पाठ”
यह कृति केवल रागनियों का संग्रह नहीं, बल्कि लोक-ध्वनि में स्त्री-चेतना, धर्म, प्रतिरोध और आत्मबोध का गहन सांस्कृतिक दस्तावेज़ है।

रागनी की माटी में द्रौपदी की अग्नि

इस ग्रंथ में द्रौपदी को न तो केवल पाँच पतियों की पत्नी के रूप में देखा गया है, न ही मात्र अपमानित नारी के रूप में। कवि ने उन्हें 32 विभिन्न मनोभावों में—शौर्य, क्रोध, तपस्या, विवेक, करुणा और दार्शनिक स्वीकारोक्ति—के साथ लोकछंद में रूपायित किया है।

यह ग्रंथ द्रौपदी के तीन केंद्रीय आयामों को उभारता है—


1. शौर्य, अहंकार और प्रतिशोध की अनिवार्यता

(Raudra Swaroop)

स्वयंवर में कर्ण का तिरस्कार और सभा में दुर्योधन का उपहास—ये घटनाएँ केवल प्रसंग नहीं, बल्कि महायुद्ध की नींव हैं।

रागनी 2 से उद्धरण:

“भरी सभा में उस यज्ञसेनी नै, कहकै सूत पुकारा था
घूँट खून की पीकै रहग्या, यो माड़ा बखत बिचारा था”

वस्त्रहरण के पश्चात द्रौपदी का क्रोध निजी नहीं रहता—वह धर्म का संकल्प बन जाता है।

रागनी 14 (प्रतिशोध):

“जिस जँघा का करया इशारा, वा तन तै अलग धराऊँगी
तेरी छाती का रक्त काढ़कै, उस रक्त में केश रँगाऊँगी”

यह स्त्री की लज्जा को शक्ति में बदलने का लोक-घोष है।

2. धर्म को चुनौती देती तपस्विनी

(Tapasvini Swaroop)

वनवास में द्रौपदी केवल सहनशील नारी नहीं रहतीं—वे निष्क्रिय धर्म को प्रश्नों के कटघरे में खड़ा करती हैं।

रागनी 21 (युधिष्ठिर से प्रश्न):

“इब जंगळ में तूँ बण्या तपस्वी, तनै राजधर्म का नाश करया
तेरा धीरज ना किसे काम का, पहलम ना अहसास करया”

यहाँ द्रौपदी धर्म की व्याख्याता बनती हैं—लोकचेतना की न्यायधुरी।

3. दार्शनिक विलाप और नियति की स्वीकारोक्ति

युद्धोत्तर शोक और महाप्रस्थान इस कृति को उच्च साहित्यिक धरातल पर प्रतिष्ठित करते हैं।

रागनी 31 (गांधारी के साथ विलाप):

“तेरे सौ पुत्र थे पाप के भागी, अरी मत रोवै गन्धारी माता”

और अंतिम सत्य—

रागनी 32 (महाप्रस्थान):

“द्रोपदी धरती पै पड़ गई, इब आखिरी न्याय सुणाणा था।
मैं हाड़-मांस की नारी थी, मन्नै मन का मोल चुकाणा था।”

यह द्रौपदी को देवी से पुनः मानव बनाती है—संघर्षशील, अपूर्ण, किंतु महान।

शास्त्रीय अनुशासन और लोक-सौंदर्य

यह ग्रंथ छंदशास्त्र (पिंगल), ताल और लोक-धुनों का सशक्त समन्वय प्रस्तुत करता है। प्रत्येक रागनी के लिए चयनित लोकप्रिय धुनें गंभीर प्रसंगों को भी जनभाषा में आत्मसात कर लेती हैं—यह कवि की अद्वितीय कलात्मक दृष्टि है।

🖋️ लेखक परिचय

आनन्द कुमार आशोधिया, सेवानिवृत्त भारतीय वायुसेना वारंट ऑफिसर, एक प्रतिष्ठित कवि, अनुवादक और लोक-साहित्य के गंभीर अध्येता हैं।
वे Avikavani Publishers के संस्थापक हैं और हरियाणवी, हिंदी एवं अंग्रेज़ी में 250+ से अधिक रचनाओं के रचयिता हैं।

निष्कर्ष

“द्रौपदी : एक लोक चेतना”
हरियाणवी लोककाव्य में स्त्री-चेतना के पुनर्पाठ की एक युगांतरकारी पहल है। यह कृति लोकध्वनि में धर्म, न्याय और नारी-अस्मिता के पुनर्मूल्यांकन का सशक्त साहित्यिक दस्तावेज़ है।

यह ग्रंथ आने वाली पीढ़ियों के लिए
लोक, स्त्री और इतिहास—तीनों का सांस्कृतिक साक्ष्य बनेगा।


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अविकावनी हरयाणवी रागणी संग्रह

अविकावनी हरयाणवी रागणी संग्रह

 

अविकावनी हरयाणवी रागणी संग्रह

अविकावनी हरयाणवी रागणी संग्रह

सांस्कृतिक चेतना, सामाजिक प्रतिरोध और भक्ति की लोकगाथा

लेखक / कवि / संकलक / विश्लेषक:
श्री आनन्द कुमार आशोधिया
(पूर्व भारतीय वायुसेना अधिकारी, शाहपुर तुर्क, सोनीपत, हरियाणा)

📚 पुस्तक विवरण (ISBN Authority)

  • पुस्तक का नाम: अविकावनी हरयाणवी रागणी संग्रह

  • लेखक / कवि: आनन्द कुमार आशोधिया (कवि आनन्द शाहपुर)

  • विधा: सांस्कृतिक चेतना, सामाजिक प्रतिरोध और भक्ति की लोकगाथा

  • ISBN (द्वितीय संस्करण): 978-93-344-2403-4 

  • प्रकाशन वर्ष: 2025

  • प्रकाशक: Avikavani Publishers

  • स्वप्रकाशन: Anand Kumar Ashodhiya

  • स्थान: शाहपुर तुर्क, सोनीपत, हरियाणा

ISBN 978-93-344-2403-4 इस कृति को वैश्विक पुस्तक पारिस्थितिकी तंत्र (Global Book Ecosystem) में आधिकारिक पहचान प्रदान करता है।

प्रकाशक:
Avikavani Publishers (अविकावनी प्रकाशन)
(ISBN प्रणाली में स्वीकृत इम्प्रिंट)

प्रकाशन वर्ष: 2025
संस्करण: प्रथम

रागणी : लोक की आत्मा की वाणी

रागणी केवल गीत नहीं — यह समाज की आत्मा, संस्कृति की धड़कन और सत्य की पुकार है।

हरयाणवी रागणी केवल एक गायन शैली नहीं, बल्कि जनजीवन का जीवंत दस्तावेज़ है। यह लोक की भाषा में लोक का सत्य कहती है—बिना आडंबर, बिना बनावट।
“अविकावनी हरयाणवी रागणी संग्रह” इसी परंपरा का एक समकालीन, सशक्त और विचारोत्तेजक विस्तार है।

यह संग्रह भक्ति, सामाजिक विवेक, प्रतिरोध, स्मृति और सांस्कृतिक चेतना को एक सूत्र में पिरोता है।

लेखक का दृष्टिकोण : परंपरा और उत्तरदायित्व

श्री आनन्द कुमार आशोधिया एक पूर्व वायुसेना अधिकारी होने के साथ-साथ हरयाणवी लोक साहित्य के सजग संरक्षक हैं। उनकी रचनाओं में—

  • लोक जीवन की सच्चाई

  • सांस्कृतिक स्वाभिमान

  • नैतिक चेतना

  • और सामाजिक उत्तरदायित्व

स्पष्ट रूप से परिलक्षित होता है। वे गुरु पालेराम जी की लोक परंपरा से प्रेरित होकर रागणी को केवल मनोरंजन नहीं, बल्कि लोक-संवेदना का माध्यम बनाते हैं।

सांस्कृतिक चेतना और लोक गौरव

इस संग्रह की रचनाओं में हरियाणा की मिट्टी की सोंधी सुगंध है।
“दक्ष प्रजापति जयंती” जैसी रचनाएँ लोक भाषा में इतिहास और संस्कृति का पुनर्पाठ प्रस्तुत करती हैं।

“किस्सा शाही लकड़हारा” में स्त्री गरिमा, सहभागिता और सहजीवन की भावना अत्यंत मार्मिक रूप में सामने आती है—

“ठहर टुक मैं भी चालूँगी
करूँ मैं चौबीस घंटे टैहल, गेड़ में ल्यादूं सारे काम”

यह पंक्तियाँ केवल प्रेम नहीं, बल्कि समानता और सामूहिक जीवन दर्शन की उद्घोषणा हैं।

भक्ति और लोक श्रद्धा का संगम

“बम लहरी – नया हरयाणवी शिव कांवड़ भजन” में लोक भक्ति और सामूहिक श्रद्धा का सशक्त स्वर है—

“बोल बम, बोल बम, बोल लहरी, बोल लहरी
कांवड़ लेकै भोले चाले बम लहरी”

यह रचना लोक मंचों पर जनचेतना को जागृत करने वाली भक्ति की ऊर्जा से परिपूर्ण है।

आधुनिक विडंबना और सामाजिक प्रतिरोध

संग्रह की रचनाएँ समकालीन समाज की विसंगतियों पर भी निर्भीक दृष्टि डालती हैं।
“इंटरनेट मोबाइल खतरा” जैसी रचनाएँ आधुनिक जीवन में मूल्यों के क्षरण पर प्रश्न उठाती हैं—

“बिन संस्कार पळै जो पीढ़ी, किसा बणै यो हिंदुस्तान
भाषा-बोली, रीत-रिवाज की, या सारी मौज उजड़ली”

यह केवल आलोचना नहीं, बल्कि सांस्कृतिक आत्मरक्षा की पुकार है।

धार्मिक पाखंड और नैतिक गिरावट पर प्रहार

“बदल गया इन्सान” जैसी रचनाओं में लेखक धार्मिक आडंबर, जातिवाद और राजनीतिक स्वार्थ पर करारा प्रहार करते हैं—

“नाम धर्म का ले ले कै नै सब उल्टे धंधे करते हैं
हिन्दू मुस्लिम के नाम पै वोटों की गिणती करते हैं”

यह लोक साहित्य को सामाजिक और राजनीतिक विवेक से जोड़ने का साहसिक प्रयास है।

🖋️ लेखक परिचय

आनन्द कुमार आशोधिया, सेवानिवृत्त भारतीय वायुसेना वारंट ऑफिसर, एक प्रतिष्ठित कवि, अनुवादक और लोक-साहित्य के गंभीर अध्येता हैं।
वे Avikavani Publishers के संस्थापक हैं और हरियाणवी, हिंदी एवं अंग्रेज़ी में 250+ से अधिक रचनाओं के रचयिता हैं।

निष्कर्ष : लोक साहित्य का सांस्कृतिक ग्रंथ

“अविकावनी हरयाणवी रागणी संग्रह” केवल रागणियों का संकलन नहीं, बल्कि—

  • लोक चेतना का दस्तावेज़

  • सांस्कृतिक पुनरुद्धार का प्रयास

  • और सामाजिक विवेक की वाणी

है।

यह कृति हरयाणवी लोक साहित्य में एक सांस्कृतिक ग्रंथ के रूप में स्थापित होगी, जो आने वाली पीढ़ियों को भाषा, परंपरा और मूल्यों से जोड़ने का कार्य करेगी।


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