Monday, November 10, 2025

मातृभुमि

 

मातृभुमि

मातृभुमि


कुर्बां होकर देश के ऊपर, जब शहीद लौटकर आते हैं 

बड़े बड़े सूरमाओं के भी, कलेजे मुँह को आते हैं

मेरी जननी ने शेर जना है, ना उसका दूध लजाउँगा 

ताल ठोंक कर रणभूमि में, दुश्मन को मज़ा चखाउँगा  


सबकी किस्मत में नहीं होता, देश पे फ़ना हो जाना 

जिस मिट्टी में पले बढ़े, उस मिट्टी में ही सो जाना 

चूम धरा को इस मिट्टी से, माथे पे तिलक लगाऊँगा 

भर हुँकार, दे ललकार, युद्ध में रणभेरी बजाऊँगा 

 

जब भी देश पुकारेगा, मैं हाज़िर हूँ भारत माँ की सेवा में 

देश से बढ़कर कुछ नहीं जीवन में, मैं तत्पर राष्ट सेवा में 

मातृभूमि की रक्षा हेतु ना पीछे कदम हटाऊँगा 

वीर सुशोभित होते रण में जग को ये बतलाऊंगा 


मैं लिपट तिरँगे में जब भी आऊँ, कोई आँसूँ ना बहाना 

मेरी शहादत व्यर्थ ना हो, बस माँ भारती के नारे लगाना 

मातृभुमि की रक्षा हेतू खून की होली में दुश्मन को नहलाऊँगा 

करके सुरक्षित मातृभुमि को फिर चिरनिंद्रा सो जाऊँगा   


रचनाकार : आनन्द कुमार आशोधिया©2024

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