फिर क्या हो?
गाँव में सजना हो, सजना का अंगना हो, अंगना में छैया हो,
छैया के नीचे मेरे प्यार की मड्डय्या हो - फिर क्या हो?
फिर मैं जानूं या वो जाने - फिर मैं जानूं या वो जाने ....होहो होहो होहो
वो धीरे से मुस्काएगा मैं, घूँघट में शर्माउन्गी
वो अपने पास बुलाएगा मैं, ना में सर हिलाउंगी
वो मुझको खूब मनाएगा मैं, कतई हाथ न आऊँगी
वो गुस्सा हो धमकाएगा मैं, कतई पास ना आऊँगी
फिर क्या हो?
फिर मैं जानूं या वो जाने - फिर मैं जानूं या वो जाने ....होहो होहो होहो
सुबह की लाली से पहले मैं, सखियों से आँख चुरा लूँगी
वो खोद-खोद के पूछेंगी मैं, सारा भेद छुपा लूँगी
जो आएगी याद सजन की, सीने की आग छुपा लूँगी
शाम के ढलते सूरज के संग, उसे अपने पासे बुला लूँगी
फिर क्या हो?
फिर मैं जानूं या वो जाने - फिर मैं जानूं या वो जाने ....होहो होहो होहो
वो गुस्से में सो जाएगा, मैं करके प्यार मना लूँगी
वो अपनी बात अड़ाएगा, मैं बिगड़ी बात बना लूँगी
वो शह पाके ईतरायेगा, मैं नीचे नज़र झुका लूँगी
वो फिर भी समझ ना पायेगा, मैं खुद ही गले लगा लूँगी
फिर क्या हो?
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