माँ की अभिलाषा
भगवान तुम्हारे मंदिर में मैं एक ही विनती करती हूँ।
मेरी उम्मीद सरीखा पुत्र वर दो यही कामना करती हूँ।।
चाह नहीं कि मेरा पुत्र सुन्दर स्वस्थ बलवान हो,
ये भी मुझको चाह नहीं कि वो वीर शिवाजी समान हो,
मैं तो ये भी नहीं चाहती कि वो शिक्षक या विद्वान् हो,
और न ही किसी महफ़िल में उसकी कवियों जैसी शान हो,
सज्जनता की मूरत ना हो, भले आदमियों सी सूरत ना हो,
मातृभूमि का रक्षक ना हो, वीर लड़ाका युद्धरत्त ना हो,
सत्यता की मूरत ना हो, बात में उसकी सत्त ना हो,
किसी धर्म का अगुआ ना हो, उसके सम्मुख सत पथ ना हो,
तो फिर कैसा हो?
धूर्त लोभी लम्पट कपटी, दुर्जन सा हैवान हो,
काम क्रोधी जाहिल काहिल, गज भर की जुबान हो,
डाकू चोर लुटेरा ठग हो, सही मायनों में शैतान हो,
लूटपाट मारकाट उसके नाम की पहचान हो,
थाली का बैंगन हो, बेपैन्दी का लोटा हो,
झूठ का पुलिंदा हो, उसका हर कर्म खोटा हो,
राजनीतिक क़द ऊँचा हो, भले शरीर का छोटा हो,
आम आदमी को हरदम उसके दर्शनों का टोटा हो,
ताकि वो इन गुणों से सुसज्जित होकर राजनेता बन सके,
मक्कारी की चादर ओढ़े, जनता का चहेता बन सके,
क्योंकि आज के संसार में बाकी धंधे मंदे हैं,
जो राजनीति करने लगे, वो अक्लमन्द बन्दे हैं,
इनके सम्मुख नेत्रयुक्त भी आँखों से अन्धे हैं,
इनकी छवि साफ़ सुथरी, बाकि सब गंदे हैं,
भगवान तुम्हारे मंदिर में मैं एक ही विनती करती हूँ।
मेरी उम्मीद सरीखा पुत्र वर दो यही कामना करती हूँ।।
रचयिता : आनन्द कवि आनन्द कॉपीराइट © 2015
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