वक़्त
वक़्त का गुलाम है ये आदमी
वक़्त का नवाब भी है ये आदमी
आदमी ही सत्य को पहचानता
आदमी ही धर्म को है मानता
जानता है राम को ये आदमी
वक़्त का गुलाम है ये आदमी
आदमी ही झूठ को तराशता
आदमी ही सत्य को नकारता
स्वीकारता है "काम" को ये आदमी
वक़्त का गुलाम है ये आदमी
आदमी ही आदमी को मारता
आदमी ही जिंदगी संवारता
वीरता का नाम भी है आदमी
वक़्त का गुलाम है ये आदमी
आदमी ही आइना समाज का
वो रक्षक भी है नारी की लाज का
यहाँ भी बदनाम है यह आदमी
वक़्त का गुलाम है ये आदमी
आदमी ही कायरता का रूप है
आदमी ही मौत का स्वरूप है
रूप है भगवान का ये आदमी
वक़्त का गुलाम है ये आदमी
वक़्त का नवाब भी है ये आदमी
रचयिता : आनन्द कवि आनन्द कॉपीराइट © 2015
No comments:
Post a Comment