बेवफाई
होठों से लगाके पी लूं, तू वो जाम ही नहीं
सीने पे गुदा के जी लूं, तू वो नाम ही नहीं
बेवफाई का सबब, अब तक जान ना सका
चेहरे पे लगे मुखौटे को, पहचान ना सका
तूं छू ले हर बुलंदी को, हम बेनाम ही सही
होठों से लगाके पी लूं, तू वो जाम ही नहीं
सीने पे गुदा के जी लूं, तू वो नाम ही नहीं
मायूसी का आलम, हमें जीने नहीं देता
तन्हाई का आलम, हमें जीने नहीं देता
जिसकी करूँ इबादत, तूं वो राम ही नहीं
होठों से लगाके पी लूं, तू वो जाम ही नहीं
सीने पे गुदा के जी लूं, तू वो नाम ही नहीं
काली घनी रातों में, अकेला जगता ही रहा मैं
भुला के सब कुच्छ, खुद को ठगता ही रहा मैं
खुशियों से भरदे दामन, ऐसी कोई शाम ही नहीं
होठों से लगाके पी लूं, तू वो जाम ही नहीं
सीने पे गुदा के जी लूं, तू वो नाम ही नहीं
रचयिता : आनन्द कवि आनन्द कॉपीराइट © 2015
No comments:
Post a Comment