Saturday, July 30, 2022

हर घर तिरंगा - आज़ादी का अमृत महोत्सव

हर घर तिरंगा - आज़ादी का अमृत महोत्सव 

मिशन तिरंगा हर घर फहरे, अपने घर पे फहराना
विश्वविजयी तिरंगा प्यारा, हर घर पर तुम लहराना

शिक्षा के व्यापारी बनकर, गर लूट रहे हो जनता को
शोषित कर अभिभावक छात्र, लूट रहे हो जनता को
जो तूँ हो शिक्षा का व्यापारी, तो तिरंगा मत फहराना

खाकी पहन कर अन्यायी का, जो तुमने साथ निभाया हो
गरीब आदमी से रिश्वत लेकर, जो तुमने माल कमाया हो
जो तूँ हो कानून का भक्षक, तो तिरंगा मत फहराना

पृथ्वी पर भगवान समान बन, जो तुमने धन कमाया है
लोगों का विश्वास लूटकर, आडम्बर तूने रचाया है
ऐसे ढोंगी पाखंडी बाबा, तुम तिरंगा मत फहराना

श्वेत वस्त्र धारी चिकित्सक, काले कारनामे करते हो
इलाज में बेईमानी कर तुम, अपनी जेबें भरते हो
जीवन रक्षक हो व्याभिचारी, तो तिरंगा मत फहराना

गीता की शपथ दिलाकर, लोगों से झूठ कहाते हो
झूठे मुकदमे तारीख कह के, काला धन कमाते हो
काले कोट में जो हो अन्यायी, तो तिरंगा मत फहराना

मिलावट और जमाखोरी कर, अनैतिक धंधा करते हो
खान पान में विष घोल कर, धन जोड़ जोड़ कर धरते हो
मिलावटखोर बेईमान व्यापारी, तो तिरंगा मत फहराना

तेरी कथनी और करनी में अन्तर, जन सेवक कहलाते हो
हर पांच साल में वादा करके, जनता को बरगलाते हो
बगुला भगत जनता का नेता, तो तिरंगा मत फहराना

लेकर शपथ संविधान की, विधि विधान भुला दिया
खा खा रिश्वत कमरे भर लिए, प्रशासन को सुला दिया
गर लेकर शपथ भूल गया हो, तो तिरंगा मत फहराना

कन्या भ्रूण हत्या जैसे, जघन्य अपराधों में लिप्त हो
दहेज लोभी, असामाजिक तत्व, मानवता से रिक्त हो
दहेज लोलुप भृष्टाचारी, तो तिरंगा मत फहराना

मेहनतकश मजदूरों का, जो तुम शोषण करते हो
राष्ट्र की सम्पत्ति हड़प कर, टैक्स की चोरी करते हो
हृदयहीन पाषाण उद्यमी, तो तिरंगा मत फहराना

रचयिता : आनन्द कवि आनन्द कॉपीराइट © 2022

हर घर तिरंगा - आज़ादी का अमृत महोत्सव

स्वरचित, मौलिक, अप्रकाशित रचना
आनन्द कुमार आशोधिया (आनन्द कवि आनन्द)
रिटायर्ड वारण्ट अफसर, वायुसेना
शाहपुर तुर्क, सोनीपत, हरियाणा
पिन 131001
मोबाइल नंबर : 9963493474

हर घर तिरंगा - आज़ादी का अमृत महोत्सव


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शहीद-ए-आज़म सरदार उधम सिंह

शहीद-ए-आज़म सरदार उधम सिंह

शहीद-ए-आज़म सरदार उधम सिंह


सुनाम शहर पिलबाद गाँव में, हिन्दू कम्बोज परिवार हुआ
नारायण कौर जननी की कोख से, पुत्र रत्न अवतार हुआ

अठारह सौ निन्यानवे साल था, महीना था दिसंबर का
तारीख छब्बीस, रात ठिठुरती, जन्मा शेर बब्बर था
पहला बेटा साधू सिंह था, इसका शेरसिंह नाम धरा
तेहाल पिता ने करी मजूरी, इन बच्चों का पेट भरा
नामकरण हुआ साधू सिंह का, मुक्ता सिंह कहलाया
बचपन से आक्रामक शेरसिंह, ऊधम सिंह कहलाया
बाल अवस्था माँ बाप गुजर गए, हो गए दोनों अनाथ
अनाथालय में पलते पलते, बड़ा भाई गया छोड़ साथ

ब्रिटिश फ़ौज में भर्ती हो गया, पहुँचा बसरा बग़दाद
एक साल में दी छोड़ नौकरी, वापस आ गया पिलबाद
जलियाँवाला काण्ड देख कर, मन में आग लगी थी
भगत सिंह का साथी बनके, देशभक्ति की लौ जगी थी
गदर पार्टी में सम्मिलित होके, बन गया क्रांतिकारी
बिन लाइसेंस हथियार जमा लिए, पकड़ा गया खिलाड़ी
पांच साल की सजा काट के, जा पहुंचा कश्मीर
जर्मनी होता लन्दन पहुंचा, आजमाने तकदीर

सीने में रही आग धधकती, बीते इक्कीस साल
कब मारुं जनरल डॉयर को, हरदम रहता यही मलाल
तेरह मार्च उन्नीस सौ चालीस, कैक्स्टन हॉल पधारा
बाँध निशाना दो गोली मारी, जनरल डॉयर मारा
मौके पर गिरफ्तारी दे दी, ना रन्च मात्र भी ख़ौफ़ हुआ
देश के ऊपर मर जाऊँगा, ये कहके बेख़ौफ़ हुआ
कृष्णा मेनन ने लड़ा मुकदमा, ब्रिटिश जज वकील
फाँसी का दिया हुक्म सुना, ना लाई पल की ढील

इकत्तीस जुलाई उन्नीस सौ चालीस, वो फांसी ऊपर झूला दिया
भारत माँ पे जान झोंक दी, अंग्रेजी शासन हिला दिया
देश विदेश में उधम सिंह की, शहादत का चर्चा ख़ास हुआ
"राम मोहम्मद सिंह आज़ाद" कहलाया, भारत माँ का दास हुआ
उधम सिंह की अस्थि बाबत, अंग्रेजों पर बना दबाव
चौंतीस साल के प्रयासों से, अस्थि पहुंची पिलबाद गाँव
ऐसे महान सेनानी को, भारत का जन जन शीश झुकाए
इस आज़ादी के मतवाले की, आओ बरसी आज मनाएं

रचयिता : आनन्द कवि आनन्द कॉपीराइट © 2022

शहीद-ए-आज़म सरदार उधम सिंह


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कारगिल विजय दिवस - कारगिल गौरव गाथा

 कारगिल विजय दिवस - कारगिल गौरव गाथा

कारगिल विजय दिवस - कारगिल गौरव गाथा

शोक संतप्त खड़ा हिमालय, सर्द शिशिर सा ठिठुरा जाय
भाँप के मन्शा पाकिस्तान की, घाटी में दई बर्फ बिछाय
सर्दी के मौसम का फायदा, पाकिस्तान ने लिया उठाय
पाँच हजार पाकिस्तानी को, दिए एलओसी पार कराय
कारगिल की ऊँची चोटी, टाइगर हिल भी ली कब्जाय
टैंट, कैम्प और अस्त्र शस्त्र, गोला बारूद लिया जमाय

यहाँ की बातें यहाँ पर छोड़ो, अब आगे का देउँ जिक्र सुनाय
भारत को जब खबर पड़ी तो, सुनके दिल सनाका खाय
तुरत फुरत सब निर्णय लेकर, सेना को दिया कूच कराय
धावा बोल दिया दुश्मन पे, रणभेरी से दिया बिगुल बजाय
बम पे बम और गोले बरसें, बन्दूकों की ठांय ठांय
गोलीबारी हुई दन दना दन, कानों में हुई साँय साँय
कर्णकटु, हृदय विदारक, धूम धड़ाम हुई धाँय धाँय
चारों तरफ गुबार धुँए का, काहु को कछु सूझ ना पाय

यहाँ की बातें यहाँ पर छोड़ो, अब आगे का देउँ जिक्र सुनाय
द्रास सेक्टर, मश्कोह घाटी, युद्ध के बादल लगे मण्डराय
कारगिल में भारतीय चौकी पर, दुश्मन बैठे घात लगाय
भारतीय सेना थी मैदानोँ में, दुश्मन ऊपर से गोले बरसाय
दल, बल, राशन, सेना टुकड़ी, आवक पे दी रोक लगाय
कैसे पार पड़े दुश्मन से, किसी की समझ में कुछ ना आय

यहाँ की बातें यहाँ पर छोड़ो, अब आगे का देउँ जिक्र सुनाय
रॉकेट, तोपें और मोर्टार, करीब तीन सौ दिए लगाय
पाँच हजार बम फायर कर दिए, मिनटों में राउंड भटकाय
धुंआधार फिर हुई लड़ाई, दुश्मन के दिए होश उड़ाय
ऐसी विकट परिस्थितियों में, वायुसेना फिर लेइ बुलाय
नियन्त्रण रेखा पार किए बिन, जहाज फाइटर दिए उड़ाय
लौ लेवल पे सोरटी भरके, हेलीकॉप्टर ने दिया ग़ज़ब मचाय

यहाँ की बातें यहाँ पर छोड़ो, अब आगे का देउँ जिक्र सुनाय
बमवर्षक विमानों ने भी, दुश्मन के दिए होश भुलाय
क्षत विक्षत पड़े हाथ पैर कहीं, नर मुंड धरा पे गिरते जाय
सात सौ दुश्मन मार गिराए, बाकि भागे जान बचाय
बटालिक की पहाड़ियाँ और टाइगर हिल भी लई छुड़ाय
सवा पाँच सौ योद्धाओं ने, दिया भारत मां पे शीश चढ़ाय
युद्धपूर्व की यथास्थिति, एलओसी पर दई बनाय

यहाँ की बातें यहाँ पर छोड़ो, अब आगे का देउँ जिक्र सुनाय
अविजित, अगम्य, दुर्गम, कारगिल लिया फतह कराय
सत्रह दिन के भीषण युद्ध में, ऑपरेशन विजय दिया जिताय
साल निन्यानवें, छब्बीस तारीख, जुलाई महीना दिया बतलाय
कर स्वभूमि पर पुनः नियन्त्रण, विजय पताका दी फहराय
कर अदम्य साहस का प्रदर्शन, सेना ने दिया मान बढ़ाय
शहीदों के शौर्य के सम्मुख, राष्ट्र जन सब शीश झुकाय

जयहिन्द।
जय भारत।।

रचयिता : आनन्द कवि आनन्द कॉपीराइट © 2022
कारगिल विजय दिवस - कारगिल गौरव गाथा



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