ख़त का जवाब दिया करो
इल्तिजा तुमसे है कि ख़त का जवाब दिया करो
हमसे ना सही हमारे ख़त से ही प्यार किया करो
ऐसा लगा है तुम्हारा ख़त मिले साल हो गए
बस इसी मायूसी में हम कितने बेहाल हो गए
शायद तुम्हें इसका ज़रा भी अंदाज़ नहीं
या तुम्हारे यहाँ पत्रोत्तर का रिवाज़ नहीं
कभी तो लिखोगी जानेमन, गर फुर्सत आज नहीं
आज-आज करके ही तो बिताता हूँ दिन
सब कुछ सूना-सूना सा है तुम्हारे बिन
रातें कटती नहीं, याद तेरी मिटती नहीं
दिल की चौखट से, सूरत तेरी हटती नहीं
सुहाना सा मौसम और वो सुहानी सी यादें
साथ जीने मरने की कसमें, और वो तेरे वादे
मुझे तडफाते रहते हैं, दिन और रात
कितना अच्छा होता, जो तुम होती मेरे साथ
जिसे पाने को मैंने दुनिया भुलादी
तेरे प्यार की चिंगारी ने मेरे मन में आग जगादी
तेरी यादों की तस्वीर ने भी थोड़ी सी हवा दी
मैं और क्या लिखूं सनम अब लिखा नहीं जाता
तुझसे जुदाई का ये मौसम, अब सहा नहीं जाता
बस मेरा तो सबसे हसीं ख्वाब हो आप
आशिकी की खुली हुई किताब हो आप
लबालब भरे प्याले से छलकती शराब हो आप
हीर और लैला सा शबाब हो आप
लव प्लस लव का हिसाब हो आप
ताज़े खिले महके हुए से गुलाब हो आप
रचयिता : आनन्द कवि आनन्द कॉपीराइट © 2015
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