बचपन
लावारिश घर छोड़े हुए, बदहाली की चादर ओढ़े हुए
घुट घुट के सिसक रहा हूँ
पेट में जलती आग की मांग से, कंपकंपाती टांग से,
लड़खड़ाता सा घिसट रहा हूँ
पहचानो मैं कौन? मै देश का शोषित बचपन हूँ
मुझसे मिलने के लिए आपको ज्यादा कष्ट नहीं उठाना है
बस अपने आलीशान घर के पास सटे कूड़ाघर तक आना है
वहीँ कचरा बीनता हुआ मिलूँगा
आवारा कुत्तों से झूठन छीनता हुआ मिलूँगा
पहचानो मैं कौन? मै देश का शोषित बचपन हूँ
अन्धविश्वाश, निरक्षरता और नशे की लत ने मुझे पकड़ रखा है
शराब, अफीम और गांजे के नशे ने तन मन को जकड रखा है
किसी अँधेरे कौने में सुन्न पड़ा मिलूँगा
या किसी चौराहे पे भीख का कटोरा थामे खड़ा मिलूँगा
पहचानो मैं कौन? मै देश का शोषित बचपन हूँ
शिक्षा दीक्षा, किताब कापी से मेरा दूर दूर तक कोई नाता नहीं
इज्जत मान, तहज़ीब कायदा, शिष्टाचार मुझे आता नहीं
मुझपे असामाजिक तत्व का ठप्पा है
नीच बदजात मेरी शकल पे लिखा है
पहचानो मैं कौन? मै देश का शोषित बचपन हूँ
रचयिता : आनन्द कवि आनन्द कॉपीराइट © 2015
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