कन्या भ्रूण हत्या
हम हरियाणे के छोरे हैं, दूध के भरे बखोरे हैं
शिक्षा दीक्षा माड़ी है, पर कोठी बँगला गाड़ी है
खेती का अम्बार है, पैसे की भरमार है
सारे ठाठ बाठ हैं, फिर भी बारह-बाट हैं
बाकी सारी मौज़ है, पर कुंवारों की फ़ौज़ है
समाज में सन्नाटा है, छोरियों का घाटा है
छोरे सबने प्यारे हैं, सबके दुलारे हैं
छोरी एक आँख भाती नहीं, माँ भी छोरी को ज़नाति नहीं
सबने चाहिए छोरे वारिस, इसलिए छोरां की होती बारिश
छोरियां का सूखा पड़ग्या, हरियाणे का रुक्का पड़ग्या
छोरी कम, छोरे ज्यादा, इब कर लो वारिस पैदा
छोरी पैदा होती नहीं, शादी म्हारी होती नहीं
ज़िन्दगी झण्ड है , फिर भी हमने घमण्ड है
कन्या भ्रूण हत्या यहाँ, रोज रोज होवै है
मरी हुई इंसानियत, गफलत में सोवै है
छोरियां की कमी के कारण, दुल्हन खरीदते हैं
कोख में ही मार छोरी, अपणा ज़मीर बेचते हैं
छोरे ऊँचे, छोरी नीची, दोयम दर्ज़ा देते हैं
औरतों को मर्दों से, नीचा ही समझते हैं
अब भी समय है, समझ जाओ, जाग जाओ
घर में औरत को, बराबरी का दर्ज़ा दिलाओ
औरतों को शिक्षित करो, कन्याओं को दीक्षित करो
माँ, बहिन, बेटी बहू को, इज़्ज़त बख्शा करो
कन्या भ्रूण हत्या रोको, कन्या की रक्षा करो
फिर देखना हरियाणे में कैसी खुशियां छायेंगी
मै हरियाणे की बेटी हूँ, कन्या गर्व से दोहराएंगी
रचयिता : आनन्द कवि आनन्द कॉपीराइट © 2015-16
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