राशन डिपो धारक की आत्मकथा
(तर्ज़ : यो यो हनी सिंह)
चार बोरी अनाज की, बात है ये राज़ की
धंधा मेरा चोखा है, मुनाफा भी मोटा है
थोड़ी सी बेईमानी, थोड़ी सी झूठ है
थोड़ी सी बदनीयत और लूट ही लूट है
कोई कुछ बोल जाए, किसी की मज़ाल नहीं
कभी यहाँ अनाज नहीं, कभी यहाँ दाल नहीं
जो भी मुंह खोलेगा, उसका कोटा काट दूंगा
आधा राशन बेच दूंगा, आधा सब मे बाँट दूंगा
कानूनी दांव पेंच सारे नियम ढीले हैं
ऊपर से नीचे तक सब धांधली में मिले हैं
मेरा कोई दोष कोनी, मैं तो सिस्टम का पुर्जा हूँ
बेईमानी, बदनीयती और भ्रष्टाचार से उपजा हूँ
मुझको बदलना है तो सिस्टम को बदल डालो
जागो उठो खड़े हो, राजनीती को बदल डालो
जब तक ये न होगा, बक- बक करते रहो
भूख और कुपोषण से रोज रोज मरते रहो
रचयिता : आनन्द कवि आनन्द कॉपीराइट © 2015-16
No comments:
Post a Comment