पेट की भूख मुझे सोने नहीं देती
पेट की भूख मुझे सोने नहीं देती
आँखों की शर्म मुझे रोने नहीं देती।
पेट की भूख मुझे सोने नहीं देती।।
किस से गम छुपाऊँ और किस को घाव दिखाऊं
इस पेट काटती भूख को कैसे मैं बहलाऊँ
समझ नही आता मुझे क्यों दो जून की रोटी मयस्सर नहीं होती
सुलगती भूख की मुलाक़ात रोटी के टुकड़े से अक्सर नहीं होती
इंसानियत बेचकर खा गया इंसान, हम मज़लूमों पर उनकी निगाह अक्सर नहीं होती
बेसहारा निराश्रित भूख से बिलबिलाते चेहरों पे, दर्द की शिकन रह गुज़र नहीं होती
रचयिता : आनन्द कवि आनन्द कॉपीराइट © 2015-16
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