शहीद-ए-आज़म सरदार उधम सिंह
सुनाम शहर पिलबाद गाँव में, हिन्दू कम्बोज परिवार हुआ
नारायण कौर जननी की कोख से, पुत्र रत्न अवतार हुआ
अठारह सौ निन्यानवे साल था, महीना था दिसंबर का
तारीख छब्बीस, रात ठिठुरती, जन्मा शेर बब्बर था
पहला बेटा साधू सिंह था, इसका शेरसिंह नाम धरा
तेहाल पिता ने करी मजूरी, इन बच्चों का पेट भरा
नामकरण हुआ साधू सिंह का, मुक्ता सिंह कहलाया
बचपन से आक्रामक शेरसिंह, ऊधम सिंह कहलाया
बाल अवस्था माँ बाप गुजर गए, हो गए दोनों अनाथ
अनाथालय में पलते पलते, बड़ा भाई गया छोड़ साथ
ब्रिटिश फ़ौज में भर्ती हो गया, पहुँचा बसरा बग़दाद
एक साल में दी छोड़ नौकरी, वापस आ गया पिलबाद
जलियाँवाला काण्ड देख कर, मन में आग लगी थी
भगत सिंह का साथी बनके, देशभक्ति की लौ जगी थी
गदर पार्टी में सम्मिलित होके, बन गया क्रांतिकारी
बिन लाइसेंस हथियार जमा लिए, पकड़ा गया खिलाड़ी
पांच साल की सजा काट के, जा पहुंचा कश्मीर
जर्मनी होता लन्दन पहुंचा, आजमाने तकदीर
सीने में रही आग धधकती, बीते इक्कीस साल
कब मारुं जनरल डॉयर को, हरदम रहता यही मलाल
तेरह मार्च उन्नीस सौ चालीस, कैक्स्टन हॉल पधारा
बाँध निशाना दो गोली मारी, जनरल डॉयर मारा
मौके पर गिरफ्तारी दे दी, ना रन्च मात्र भी ख़ौफ़ हुआ
देश के ऊपर मर जाऊँगा, ये कहके बेख़ौफ़ हुआ
कृष्णा मेनन ने लड़ा मुकदमा, ब्रिटिश जज वकील
फाँसी का दिया हुक्म सुना, ना लाई पल की ढील
इकत्तीस जुलाई उन्नीस सौ चालीस, वो फांसी ऊपर झूला दिया
भारत माँ पे जान झोंक दी, अंग्रेजी शासन हिला दिया
देश विदेश में उधम सिंह की, शहादत का चर्चा ख़ास हुआ
"राम मोहम्मद सिंह आज़ाद" कहलाया, भारत माँ का दास हुआ
उधम सिंह की अस्थि बाबत, अंग्रेजों पर बना दबाव
चौंतीस साल के प्रयासों से, अस्थि पहुंची पिलबाद गाँव
ऐसे महान सेनानी को, भारत का जन जन शीश झुकाए
इस आज़ादी के मतवाले की, आओ बरसी आज मनाएं
रचयिता : आनन्द कवि आनन्द कॉपीराइट © 2022
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